मान्यताओं के अनुसार अजयपाल बाबा प्रात:काल साधु में रूप में, दोपहर को चरवाहे के रूप में और सायंकाल राजा के रूप में रहते है। भाद्र माह के शुक्ल पक्ष की छठी तिथि को अजयपाल बाबा की तिथि मानी जाती है। लोग इनकी पूजा करते है। ऐसा विश्वास है कि अजयपाल बाबा बीमारियों , सर्पो एवं जानवरों से रक्षा करते है।
इतिहास मतों के अनुसार सातवीं शताब्दी में चौहान राजा अजयपाल हुए। वे बहुत बड़े शिवभक्त थे। उन्होंने अजोगंध महादेव मंदिर का निर्माण करवाया। राजा अजयपाल ने ही अजमेर की स्थापना की थी।राजा अजयपाल ने अपनी वृध्दावस्था में राज-पाट त्याग कर इस मंदिर में शिव भक्ति की थी और शिवभक्ति करते हुए अपने प्राण त्यागे। अजगंज महादेव मंदिर के पास ही अजयपाल बाबा का मंदिर है।जिसमे अजयपाल बाबा की सोटा लिए हुई मूर्ति है। इस मूर्ति की पूजा की जाती है। बाबा के मंदिर से नीचे आने पर एक विशाल घानी है। कहा जाता है कि जब कोई विधर्मी किसी हिंदु की पूजा-पाठ में ख़लल डालता था तो राजा अजयपाल उसे इस घानी में पिसवा देते थे।
एक बार राजा अजयपाल अपनी इस रानी व दासियों के साथ पहाड़ो में विचरण कर रहे थे। तभी लुटेरों ने आक्रमण कर दिया । इस आक्रमण में रानी का हाथ व एक स्थन कट गया। विचलित होकर रानी पहाड़ो से उतर कर सती हो गई। जहाँ आज रूठी रानी का मंदिर है। सती होने के बाद दुखी राजा अजयपाल ने शिव की तपस्या कर उनसे सत माँगा। तब शिवशंकर ने स्त्रिमोह से पीड़ित राजा का स्त्री मोह भंग किया। तब राजा अजयपाल इसी स्थान पर रहकर शिव की तपस्या में लीन हो गए।
अजयपाल बाबा के मंदिर का स्थान बड़ा रमणीय है। सर्पीली पहाडियों के बीच झरना स्थित है यहाँ दो सरोवर है। जल उपर के सरोवर से झरने के रूप में नीचे वाले सरोवर में आता है। वर्षाकाल में यह स्थान स्वर्ग से समान लगता है।